अमित शर्मा
8 मई को फेसबुक ने नोटिफिकेशन दिया तो पत्रिका टीवी के एजेंडा टुडे के एंकर को देखकर आंखे चमकने लगीं. दिल खुश हुआ उस दढ़ियल पत्रकार को फिर से स्क्रीन पर ऑन एयर देखकर.
अभिषेक तिवारी कार्टूनिस्ट हैं. देशभर में ख्यात हैं. दो साल पहले जब हम राजस्थान पत्रिका का नया वेंचर, पत्रिका टीवी लॉन्च कर रहे थे, तो एक नया टास्क था. प्रिंट की टीम को टीवी में जोड़ना. एक कार्टूनिस्ट से तीखा व्यंग्यकार और कौन हो सकता है भला. आज का एजेंडा नाम से शो प्लान हुआ, जो बाद में एजेंडा टुडे हुआ. एक घंटे के मॉर्निंग प्राइम टाइम को ऐसे हाथों में जहां पहले कभी टीवी का अनुभव न हो, आश्चर्यजनक निर्णय था.
कभी मुस्कुराते, कभी गुस्साते, कभी झल्लाकर तो कभी इठलाकर ये शो कब एक साल पूरे कर गया, पता ही नहीं चला. ऐसा कई बार हुआ कि अभिषेक तिवारी और मैं चाय पर निकले हैं और राह में मिले अजनबी कहते हैं, आपको टीवी पर देखते हैं. सुना तो मजा आ गया.
अपनी दाढ़ी की ही तरह खूबसूरत और खुर्राट दोनों का मिश्रण इस इनसान में है. हमारी कई बार बहस हुई, तल्खियां हुईं. पर हेट्स ऑफ के साथ कहना होगा- इस उम्र में सीखना आसान नहीं होता. प्राय हम लोग किसी एक माध्यम में सफल हो जाते हैं तो दूसरे किसी भी नवाचार से बचते हैं. क्यों, क्या जरूरत, ना बाबा ना, जेहन में आना स्वभाविक हो जाता है. पर भिंड के पंडत ने चैलेंज लिया. सीखा. और एक स्टैबलिश प्राइम टाइम एंकर के तहत जगह बनाई. उनकी गैरमौजूदगी में कई बार मैंने भी एजेंडा को एंकर किया, पर वो फील न डाल पाया. लफ्फाजी गिमिक में माहिर होना अलग है और अपने शो को अपने मुताबिक रंगना अलग. अभिषेक सुबह चार बजे उठते, घर से अपनी खबरों का सलेक्शन करते.
जब जब अपने शो को लेकर फ्लोर पर किसी से उलझते तो और अच्छा लगता. ऐसी झड़प आपको अपने काम से मोहब्बत करना सिखाती हैं. इस पूरी तारीफ को कोई यूं कर न लें कि वो कोई महान एंकर हो गए, हां बहुत कमिया हैं. लाइव, डिक्शन, प्रोनाउनसिएशन जैसी लंबी फेहरिस्त है जिस पर तिवारी जी को काम करना है. पर बिना किसी मजबूरी के एक माध्यम की पारंगतता के साथ बिलकुल उलट माध्यम को सीखना, उसमें रमना दो जवान गबरुओं के बाप के लिए हिम्मत का काम है.
कई महीनों के अंतराल के बाद (संभवत एक कार्टूनिस्ट की चुनावी व्यस्तता) इस नाटे कद के दढ़ियल एंकर को उसी अंदाज में सुबह सवेरे एजेंडा टुडे को होस्ट करते देख, दिल गार्डन गार्डन हो गया, ये बात अलग कि जब पहली बार किया था, तो हम साथ-साथ थे, इस बार जुकरबर्ग के नोटिफिकेशन से दिल्ली से ताक रहे थे.
बहरहाल, तिवारी जी बाधाई. छा जाइए.
आमीन.
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Beautiful Prof. ! Welcome back…
हमसे जुड़ने का शुक्रिया स्वामी जी..
जय हो.