जयपुर, स्पेशल रिपोर्ट।

पिछले दो महीने के रुझानों को देखें तो पाएंगे कि राजस्थान के नेताओं की सक्रियता बढ़ गई है। सोशल मीडिया पर उनके पोस्ट बढ़ गए हैं. सांसद केन्द्र का गुणगाण कर रहे हैं। राजस्थान सरकार के मंत्री अपने आईएएस अफसरों से सूची मांग रहे हैं कि क्या क्या काम हुए। कोरोना काल के चलते सुस्त पड़ी रफ्तार अब इलेक्शन मोड में आती दिख रही है।
इसी बीच बहुत से मीडिया मैनेजर भी एक्टिव हो गए हैं। सोशल मीडिया पर पोस्ट करने वालों का टोटा होने लगा है। ग्राफिक्स के फुल टाइमर्स और वीडियो एडिटर्स की किल्लत शुरू हो गई है। एक बड़ा भ्रम है कि सोशल मीडिया पर पूरी ताकत लगा दो तो चुनाव जीत जाएंगे। पर कड़वा सच है कि सोशल मीडिया का बज वोट में तब्दील नहीं हो पाता।
वोट तो काम पर ही मिलता है। सोशल मीडिया से नाराजगी और नकारता जल्दी फैलाई जा सकती है। निगेटिव फैक्ट वायरल भी जल्दी होते हैं। लेकिन बावजूद इसके अगर कोई नेता सोशल मीडिया पर है भी नहीं और पांच साल फील्ड में रहा है। काम किया है, तो उसके चुनाव निकालने के चांसेज ज्यादा रहते हैं। पर नेता तो आजकल बड़े नेता हैं। बिना काम किए, फेसबुक पर तुलसी जयंती और रमजान मुबाकर के संदेश लगा कर चुनाव जीतना चाहते हैं। एक ही क्रिएटिव पर दस नेताओं की अलग अलग फोटो चिपकाए ऐसे पोस्ट आप देख सकते हैं। कई बार तो श्रद्धांजलि पर भी मुबारकबाद दे दी जाती है।
सुना है मुख्यमंत्री के एक बहुत अजीज शख्स आज कल कई नेताओं के सोशल मीडिया अकाउंट को मैनेज कर रहे हैं। पहले मुख्यमंत्री प्रिंट से वरिष्ठों को अपना OSD सलाहकार या कुछ और बनाया करते थे। सलाह लेते थे.. अब सोशल मीडिया के ठेके उठते हैं।
पर पर पर… अगर सिर्फ सोशल मीडिया की झांकी काम आती तो अखिलेष विपक्ष में नहीं होते। सच में यूपी में अखिलेश की कैंपेनिंग योगी से कहीं बेहतर थी। ऐसे और भतरे उदाहरण हैं.. खैर.. साल-दो साल के लिए कइयों को रोजगार मिल गया है.. चलने दो.. जैसा चल रहा है.. जय राम जी की.. खुदा हाफिज।

जुबानी जंग के बाद नेता लाएं हैं सोशल मीडिया जंग।