उजला ही उजला शहर होगा जिसमें हम-तुम बनाएंगे घर, दोनों रहेंगे कबूतर से जिसमें होगा ना बाज़ों का डर
ये पीयूष मिश्रा का लिखा शेर है.. भगत सिंह ने भी एक ऐसे ही घर का सपना सोचा था. हिन्दुस्तानियों के लिए एक आजाद घर, जहां किसी बाज का कोई खतरा न हो, लेकिन क्या वो घर मिला ?
इसी सवाल को उन्होंने अपने नाटक गगन दमामा बाजियो में लिखा जिसे एक बार फिर जयपुर रंगमंच के कलाकारों ने अभीनीत किया. ब्रीदिंग स्पेस थिएटर ग्रुप की ओर से रंग राजस्थान थिएटर फेस्टिवल में अभिषेक गोस्वामी निर्देशित नाटक गगन दमामा बाजियो प्रस्तुत किया गया. तकरीबन 35 कलाकारों ने इस नाटक में अभिनय किया. डेढ़ घंटे के इस नाटक में भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, चन्द्र शेखर आजाद समेत सभी क्रांतिकारियों ने एक बार फिर 1920 से लेकर 1947 तक की उस क्रांति को दर्शकों के सामने रखा. नाटक के बाद रंग संवाद में एनएसडियन अरुण व्यास ने निर्देशक अभिषेक गोस्वामी से नाटक को लेकर सवाल पूछे. पहला ही सवाल ये था कि रंगमंच का भगत सिंह रंगमंच के गांधी के बारे में क्या सोचता है.
इस संध्या के मंच संचालक आशीष जैन ने अंतिम क्षण तक दर्शकों को बांधे रखने में कसर न छोड़ी. आशीष जैन का अपना अल्हड़ अंदाज उन्हें स्टीरियो टाइप संचालन से अलग करता है.
यहां अभिषेक मुद्गल का जिक्र भी बनता ही है जो पिछले पांच सालों से जयपुर में रंग राजस्थान जैसा शानदार फेस्टिवल कराते आ रहे हैं. सफल आयोजन के लिए टीम रंग राजस्थान को बधाई.

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